मन बुड्ढा भोगी बना, फिर भी ना अघाय.
जैसे सूअर कीचड में, लथपथ हो सुख पाय..
नर-पशु की भरमार है, सीमित इनके काम.
खाना डरना सोना व, वासनाएं तमाम..
लोकसेवा का क्षेत्र हो या, मालिक की दूकान.
वासना नाच दिखाए, ओढ़ सेवा परिधान..
वासना सेवत थक चुके, दूजे सेवा की आड़.
वासना कब अघाती, इसकी छाती फाड़ ?..
झूठी शान लिए ढूंढे, वासना का आहार.
पॉलिसी बन पड़ी बस, मौके की हथियार.
स्वार्थ जब टकराई, तब देखो कोलाहल !.
दो नर-पशु लड़ भिडे, लहूलुहान और घायल..
दूजे का हक़ छीनकर, भया एक बल साढ़.
बेवजह बल प्रयोग करे, रह रह दे हुंकार..
नर-पशु से भी बड़ी पद, नर-पिशाच की चाहत.
मसान मानव रक्त चखा, खून की ही जरूरत..
नर-पशु की कमजोरी पर, जीते नर-पिशाच.
लाठी वाले की भैंस व, मछली न्याय अब साँच..
तुच्छ स्वार्थ के पीछे, सैकड़ों करे कुर्बान.
मरघट का प्रेत बना, घूमे सीना तान..
हजारों दिल का खून पी, हो चला मदमस्त.
इसी में तो जायका है ?, बन्दा अब अभ्यस्त..
इन्द्रिय राह छोड़ कर, कई गुना सुख उभार.
भीतरी अजर स्रोत से, स्थायी सुख अपार.
जैसे सूअर कीचड में, लथपथ हो सुख पाय..
नर-पशु की भरमार है, सीमित इनके काम.
खाना डरना सोना व, वासनाएं तमाम..
लोकसेवा का क्षेत्र हो या, मालिक की दूकान.
वासना नाच दिखाए, ओढ़ सेवा परिधान..
वासना सेवत थक चुके, दूजे सेवा की आड़.
वासना कब अघाती, इसकी छाती फाड़ ?..
झूठी शान लिए ढूंढे, वासना का आहार.
पॉलिसी बन पड़ी बस, मौके की हथियार.
स्वार्थ जब टकराई, तब देखो कोलाहल !.
दो नर-पशु लड़ भिडे, लहूलुहान और घायल..
दूजे का हक़ छीनकर, भया एक बल साढ़.
बेवजह बल प्रयोग करे, रह रह दे हुंकार..
नर-पशु से भी बड़ी पद, नर-पिशाच की चाहत.
मसान मानव रक्त चखा, खून की ही जरूरत..
नर-पशु की कमजोरी पर, जीते नर-पिशाच.
लाठी वाले की भैंस व, मछली न्याय अब साँच..
तुच्छ स्वार्थ के पीछे, सैकड़ों करे कुर्बान.
मरघट का प्रेत बना, घूमे सीना तान..
हजारों दिल का खून पी, हो चला मदमस्त.
इसी में तो जायका है ?, बन्दा अब अभ्यस्त..
इन्द्रिय राह छोड़ कर, कई गुना सुख उभार.
भीतरी अजर स्रोत से, स्थायी सुख अपार.
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